Principal’s Message

सामान्य समझ (Common sense) की संसार में बहुत प्रशंसा है। यह मनुष्य में मेहनत,कर्मों और पारिवारिक संस्कारों से फलीभूत (Complete)होती है, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य का बिना प्रयत्न और विचार किए स्वाभाविक (Natural) रूप से हितकर और अहितकर का ज्ञान रहता है। इसके विपरीत बुद्धिमत्ता का उद्भव(Origin) प्रयत्न और बुद्धि के श्रम से होता है, जिससे मनुष्य में अर्थ-अनर्थ, बल-अबल, नय-अनय तथा धर्म-अधर्म का विवेक उत्पन्न होता है। व्यक्ति में यदि यह स्वाभाविक समझ तथा स्व्-शिक्षित बुद्धिमत्ता विद्यमान हो तो उसे श्रेष्ठ मानव बनने के लिए किसीऔर गुण की इतनी आवश्यकता नहीं रहती। इसलिए हमें *स्वप्रेरित* (Self-induced) हो के कार्य करना चाहिए, जबकि समस्या सार्व है,तो सभी को आगे आना होगा, जिम्मेदारी से भागना और फल पक जाये तो हक जताना सबसे निक्रिष्ठ गुण है,और आगे आकर समस्या का समाधान खोजना और हल करने में पहल करना, ये मानव के सभी गुणों में सबसे मजबूत गुण होता है.....

हमारी शिक्षा नीति क्या सच में वो बनाते हैं जो विद्वान हैं? या जो धनवान हैं? बहुत सी बातें बहुत गहरी और बेहतर अंदाज में कहा जाता है... पर अनुसरण नहीं किया जाता... *स्वप्रेरणा* का बोध नहीं करा पाते है। जैसे नारी को महान न बनाओ उनकी इज्ज़त करो मैं भी इसी बात में दो और बात जोड़ता हूँ... नदी और गाय को मैंने देखा है,नदी की दुर्गति को...हमारी क्षेत्रीय नदियों को देखा अरपा को...हाफ को...सकरी को। मैंने देखा है उस गाय को भी जिसे बांध के चारा खिलाया जाता है, पोषण दिया जाता है,जब तक वो दुध देती है...फिर सड़कों में छोड़ दिया जाता है.... अंत में जो बात महत्त्वपूर्ण है वो ये है कि बरसों से हम महान देश के नागरिक तभी कहलायेंगे जब हम "स्वस्फूर्त" होंगे,अफनी जिम्मेदारी का अहसास करेंगें। हम उस महान भारत के लोग हैं, जिसे किसी भी देश या अन्यों के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं.... बस हमें अपनी सोच बदलनी होगी... चाहे नारी,नदी,गौ,धर्म,पानी,ऊंचनीच, शिक्षा, विद्वान-समान्य....आदि के प्रति ही क्यों न हो।
धन्यवाद।
शुभकामनाएं